Wednesday 16 November 2011

इंतज़ार

यूँ अचानक से दो वर्ष बाद,
दिल फिर वैसे ही धड़का है !
ना जाने ऐसा क्या हुआ है...
क्यों ये जिस्म ऐसे तड़पा है ?

आँखों में फिर वैसे ही अश्क है
पर कह सकूँ जिसे ऐसा नहीं कोई शख्स है
फिर अपने आप को तन्हा पाया है
क्या हालात ने फिर मझे आज़माया है ?

क्यों ये दर्द उठता है बार बार ?
क्यों याद आ जाता है मुझे उनका दुलार ?
कोई मरहम भी तो नहीं जो मिले थोडा सुकून 
ना जाने ऊपर वाले का है ये कौन-सा कानून !

क्यों अकेला रहने से डरता है ये दिल ?
क्यों कोई हमराही ढूँढता है ये दिल ?
जब आप है मेरे दिल के सबसे पास.. 
फिर क्यों अधूरी लगती है दिल की हर सांस ?

ये दिल का धड़कना, ये जिस्म का तड़पना
कभी तो ख़त्म होगा..
ये आँखों के अश्क, ये मेरी तन्हाई 
कभी तो गुम होगी..
ये दर्द का मरहम, उस कानून से सुकून 
कभी तो किस्मत में होगा..
ये दिल का अकेलापन, ये साँसों का अधूरापन
कभी तो दूर होगा..

बस उसी वक़्त के इंतज़ार में 
पल-पल काटती – मैं आपकी अंकिता !

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