Sunday 21 February 2016

कहाँ तुम चले गए!


ये किस मोड़ पर आ गयी है ज़िन्दगी ...

जिनको देख बड़े हुए इतने बरस
दूर जाते दिखने लगे है वो...
चमक मिली थी जिनके आँखों में देख के
आँसू की नमी से बंद होने लगे है वो... 
सहारा मिला था जिनके कंधों पर सिर रख के
कमज़ोर पड़ने लगे है वक़्त के बोझ से वो...
हौसला मिला था जिनका हाथ पकड़ के
छूटने लगी है उंगलियाँ अब वो...
आँख-मिचौली खेली थी जिनके पीठ पीछे छिप के
बरसों से फ़र्ज़ निभाते, झुकने लगे है वो...
चलना सीखा था जिनके क़दम से क़दम मिला के
समय की रफ़्तार में धीमे पड़ने लगे है वो...

ना जाने कितने ख्वाब थे बाक़ी
ना जाने कितनी ख्वाहिशें करनी थी पूरी
कितनी ही आशाओं को निराशा में बदल कर
कितनी ही उम्मीदों पर पानी फेर कर
एक बार फिर हालात से लड़ना सीखा कर
एक बार फिर थोड़ा और बहादुर बना कर
खुद से जुदा, सबका साथ छोड़ कर
यूँ अकेला और तन्हा कर कहाँ तुम चले गए...

ये कौन सी अजीब उम्र है?
ये किस मोड़ पर आ गयी है ज़िन्दगी?