Tuesday 30 October 2012

तुम क्या जानो



वो कुछ पल की दूरियां तुमसे 
कितनी बेचैन कर देती है, तुम क्या जानो !
हर घडी कितना लम्बा लगता है 
बयां भी कैसे करें, तुम क्या जानो !

वो करीबी के हसीं लम्हें तुम्हारे संग 
कितनी मुस्कुराहट लाती है दिल में 
पर कितना अजीब है उसके बाद का डर 
मुझे खुद हैरानगी होती है, तुम क्या जानो !

उस डर के पल में तुम्हारा संग होना 
कितना सुकून पहुँचाता हैं मन को  
बस संग तुम्हारे कंधे पे सिर रख के 
कितना आसान है तुमसे कह जाना सब बात, तुम क्या जानो !

तुम्हारा बातें करते करते सो जाना 
कितना प्यारा है तुम क्या जानो !
और फिर भी हर बार तुम्हारा कहना 
कि अब से नहीं, कितना भोला है, तुम क्या जानो !

कहने को दिल तुमसे ना जाने 
क्या क्या करता है 
बस साथ न देता दिमाग़ मेरा वरना
इंतज़ार कितना है उस पल का, तुम क्या जानो !

Monday 1 October 2012

कुछ अनमोल सवाल...



वो कुछ हसीं लम्हें 
जो गुज़ारे थे तुम्हारी बाहों में 
वो सुकून और वो शांति 
जो महसूस किया था हमने 
कितना अनमोल एहसास है, है ना?

वो आँखों में आखें मिला के
बिना कहे सारी बातें समझ जाना
वो हाथों में हाथ डाल के
बिना कुछ बोले घंटे बिताना
कितने क़ीमती पल है, है ना?

ये लगाव, ये स्नेह, कब शुरू हुआ और कब बढ़ा
इसका आभास तो कभी हुआ भी नहीं
शायद तब जब रातों में साथ घूमे
या फिर तब जब चार-चार बजे तक की हमने बातें
पर शुरुआत से क्या फर्क पड़ता है, है ना?


बस उम्मीद यही है कि 
पास रहोगे तुम मेरे हमेशा 
चाहे ग़म हो या हों ख़ुशी 
मुश्किलें आये किसी भी घडी
दिल को यकीन है कि साथ दोगे तुम, दोगे ना?