Thursday 29 March 2012

भोला नादान मन


एक नन्हे परी से मिली मैं एक बार
देख कर रह गई मैं हैरां
कि उन मासूम नज़रों में
कितनी आसान और सुलझी होती है ये दुनिया

वो हवा हवा कहा जा रहा था
मैंने पूछा, “ये हवा कहाँ है?..ज़रा दिखाओ तो!”
उसने बड़ी नादानी से हिलते हुए फूल की तरफ़
इशारा करते हुए कहा “हवा!!”
और मैं रह गयी हैरान!

अगले दिन, उसे उसकी माँ समझा रही थी
हाथ जोड़ के “जय भगवान” करने को
फिर उससे पूछा मैंने
कि भगवान कहाँ दिखते है?
उसने झट से अपनी आँखे बंद की और बोला “भगवानजी”
और फिर से मैं हो गयी अचंभित!

काश की होता इतना ही आसान हमेशा
सदा रहती ऐसी सुलझी सोच
तो ना होती इतनी मुश्किलें
ना ही होता किसी मानुष के मन में तनाव..
काश की अंतिम दम तक रह पाता
ऐसा ही भोला नादान मन!