Wednesday 4 June 2014

तुम और मैं मिलेंगे



बस उस दिन का इंतज़ार है
जब एक दूसरे का हाथ पकड़ के
एक दूजे की आँखों में आँखें डाले
एक हसीं शाम को
तुम और मैं मिलेंगे

उन समुन्दर की लहरों में चलते हुए
एक शाम को सूरज को ढलते हुए
उस कश्ती को सूरज से ओझल होते हुए
देखेंगे हम जब
तुम और मैं मिलेंगे

अपने हसीं पुराने दिनों को
अपने उन पागलपन भरी हरकतों को
वो प्यार और तकरार वो रूठने और मनाने को
याद करेंगे हम जब
तुम और मैं मिलेंगे

ना जाने कब कहाँ और कैसे
कुछ दिन, हफ्ते या महीनों में
ना ही पता है कितने वक़्त के लिए
किस लम्हे और घड़ी में
तुम और मैं मिलेंगे

बस यक़ीं है कि तुम और मैं मिलेंगे
हम मिलेंगे

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