Wednesday 29 February 2012

ख़ुदा का वजूद


कोई कहता है प्यार करने वालो में रब दिखता है
तो कोई कहता है कि आसपास ही ख़ुदा है
कुछ कहते है कि इन्सान में ही बसा है भगवान
और कभी तो पूछते है लोग
कि आखिर कहाँ हैं ये रब..ये ख़ुदा.. ये भगवान.. ये अल्लाह !
कभी नज़र तो आया नहीं वो..
पर मेरा सवाल उनसे ही है कि...
आख़िर नज़र तो हवा भी नहीं आती,
नज़र तो विश्वास भी नहीं आता,
नज़र तो प्यार भी नहीं आता,
ना ही आती है नज़र किसी की याद !
पर इन सबको तो हम सभी मानते है..
बग़ैर कोई सवाल उठाये..
फिर आखिर ये सवाल हमेशा ख़ुदा के वजूद पे ही क्यों उठता है?
आख़िर क्यों??

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