Wednesday 12 October 2011

एक मैं और एक तू

यूँ छोड़ के मुझे अकेला
कहाँ चले गए तुम यूँ अचानक
अभी तो अनगिनत मंजिलें पाना बाकी हैं
वो अलग बात है कि राहें उन्हें बदल ही देंगी

याद है मुझे हमारा कड़ी धूप में बेफिक्र घूमना
चलते चलते पैरों का थक जाना
फिर छाओं में जाकर घंटे बातें करना
ऐसे कितने मौसम संग गुज़ारे है हमने
मगर...
अभी तो साथ बारिश में भींगना बाकी है
वो अलग बात हैं कि तेज़ हवाएं भीगे बदन को सुखा ही देंगी

याद हैं मुझे वो भोर सवेरे तुझसे मिलने आना
और हर रोज़ नाश्ते में चाय-पैटी खाना
फिर किसी बात पे तेरा मुझसे रूठ जाना
पर तब भी शाम ढलते तक हमारा संग वक़्त बिताना
मगर...
अभी तो रात में आसमां के तारे देखना बाकी है
वो अलग बात हैं कि सूरज की किरणे उन तारों को छुपा ही देंगी

याद है मुझे वो हमारा साथ नदी किनारे बैठना
वो तेरे बालों को अनजाने में प्यार से सहलाना
फिर घडी घडी वक़्त देखकर मेरा घबराना
पर तब भी अगले दिन कहीं घूमने का प्लान बनाना
मगर...
अभी तो समंदर किनारे रेत में नाम लिखना बाकी हैं
वो अलग बात है कि साहिल की लहरें उन नामों को मिटा ही देंगी

यूँ छोड़ के मुझे अकेला
कहाँ चले गएँ तुम यूँ अचानक
अभी तो आगे ज़िन्दगी ना जाने कितनी बाकी हैं
वो अलग बात है कि ये तन्हाईयाँ उसे जीना मुश्किल बना ही देंगी...

यूँ छोड़ के मुझे अकेला...
आखिर साथ बस एक मैं और एक तू ही तो थे...


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