Monday, 24 October 2011

क्या सच क्या झूठ


जब से ग़लत-फहमियाँ हमारे दरमियाँ आई है 
तब से ना कोई लफ्ज़ हमारे पास है 
और ना ही कोई अलफ़ाज़ उनके पास है 
और वो कहते है कि 
हम बातें बनाना भूल गए…

उनको देखे तो सुकून-सा मिलता है 
उनके जाते ही ग़मो का साया-सा छा जाता है
क्यों मिलाये अब हम नज़रें उनसे जब ज़िन्दगी का सच ही ग़म है 
पर वो कहते है कि 
हम नज़रें मिलाना भूल गए…

पहले होते थे किसी महफ़िल में गर हम 
तो सभी के चेहरे पे मुस्कुराहट होती थी 
अब जब कोई महफ़िल सजती ही नहीं 
तो वो कहते है कि
हम हँसना हँसाना भूल गए…

पहले सभी गिले-शिकवे उनसे हम
अश्कों से बयां किया करते थे
अब कोई ख़ास शख्स ज़िन्दगी में शामिल ही नहीं 
तो हँस के वो कहते है कि 
हम आंसू बहाना भूल गए…

दुनिया से दिल कि दास्ताँ छुपाने के लिए 
ख़ुशी कि नुमाईश करने क्या लगे 
उन्होंने अन्दर समाया हुआ दर्द तो देखा भी नहीं 
और लो…वो कहने लगे कि
हम प्यार निभाना भूल गए…

ऐ दुनिया वालो
कोई जाके उनको तो बताये
उनके ज़िन्दगी से जाते ही 
हम जिंदा रहना ही भूल गए 
अपनी ज़िन्दगी जीना ही भूल गए…

Monday, 17 October 2011

मन...

ये बावरा मन मेरा
कभी उछलता इधर, कभी मचलता उधर
कोई ठिकाना ना मेरा
कहाँ ले जाये इसे एक नया सवेरा..

सूरज की किरणे हो
तो इक और चले..
काले घने बादल हो 
तो दूजी और बढे..
कहीं किसी पल तो थमेगा, रुकेगा
ये अनदेखा अनजाना मन मेरा..

हर शख्स के लिए है इसका एक नया चेहरा
ना जाने कैसे बदले ये खुद को
हर नयी घडी हर नया पहरा
कभी ज़िद्दी..पागल..शैतान..
तो कभी चंचल..भोला..और नादान !!

कभी है ये उन्मुक्त पवन सा
तो कभी है ये शांत तारों सा
कभी झकझोरता ये सबके दिलो को
तो कभी सहम जाता ये नाज़ुक कली-सा..

जिस पल समझ लू अपने इस मन को
वो वक़्त ना जाने कैसा होगा
कभी ना कभी तो आएगा ऐसा लम्हा
भले ही वो नए मंज़र का दस्तक होगा...

Wednesday, 12 October 2011

एक मैं और एक तू

यूँ छोड़ के मुझे अकेला
कहाँ चले गए तुम यूँ अचानक
अभी तो अनगिनत मंजिलें पाना बाकी हैं
वो अलग बात है कि राहें उन्हें बदल ही देंगी

याद है मुझे हमारा कड़ी धूप में बेफिक्र घूमना
चलते चलते पैरों का थक जाना
फिर छाओं में जाकर घंटे बातें करना
ऐसे कितने मौसम संग गुज़ारे है हमने
मगर...
अभी तो साथ बारिश में भींगना बाकी है
वो अलग बात हैं कि तेज़ हवाएं भीगे बदन को सुखा ही देंगी

याद हैं मुझे वो भोर सवेरे तुझसे मिलने आना
और हर रोज़ नाश्ते में चाय-पैटी खाना
फिर किसी बात पे तेरा मुझसे रूठ जाना
पर तब भी शाम ढलते तक हमारा संग वक़्त बिताना
मगर...
अभी तो रात में आसमां के तारे देखना बाकी है
वो अलग बात हैं कि सूरज की किरणे उन तारों को छुपा ही देंगी

याद है मुझे वो हमारा साथ नदी किनारे बैठना
वो तेरे बालों को अनजाने में प्यार से सहलाना
फिर घडी घडी वक़्त देखकर मेरा घबराना
पर तब भी अगले दिन कहीं घूमने का प्लान बनाना
मगर...
अभी तो समंदर किनारे रेत में नाम लिखना बाकी हैं
वो अलग बात है कि साहिल की लहरें उन नामों को मिटा ही देंगी

यूँ छोड़ के मुझे अकेला
कहाँ चले गएँ तुम यूँ अचानक
अभी तो आगे ज़िन्दगी ना जाने कितनी बाकी हैं
वो अलग बात है कि ये तन्हाईयाँ उसे जीना मुश्किल बना ही देंगी...

यूँ छोड़ के मुझे अकेला...
आखिर साथ बस एक मैं और एक तू ही तो थे...


Tuesday, 11 October 2011

बदलता वक़्त

बहुत दिनों बाद यूँ खाली वक़्त पाकर
सोचा... चलो करे कुछ दिल की बात उजागर
बताने को तो बहुत कुछ है मगर
संभव कहाँ है सब बयां करना यहाँ पर

कहने की कोशिश तो पूरी करेंगे
शुरू से अंत तक हम सब कुछ कहेंगे
बस एक ही बात का डर है इस दिल में
कहीं समझने वाले ही न रहे इस महफ़िल में

शुरुआत में तो बहुत कुछ था जिसका इंतज़ार था
पर वक़्त बीतते इतना कम वक़्त लगेगा...किसको पता था
और अब किस मोड़ पे खड़ी हूँ मैं एक अकेली तन्हा
ना जाने इसका जवाब आगे किस मोड़ पर मिलेगा

जहाँ एक ओर मैं नए रिश्ते बना रही थी
वही दूजी ओर कुछ को अंतिम राहें दे रही थी
कहीं तो कुछ उलझी बातो को सुलझा रही थी
और कहीं किसी कोने में खुद उलझती जा रही थी..

अगर कुछ पुरानी चीज़े खोयी हैं मैंने
तो कुछ नयी चीज़ पाने की पूरी उम्मीद है इस दिल में
बस अब इंतज़ार है कब आयेंगे वो लम्हे
जब दिल-ओ-दिमाग से खुश रह सकुंगी मैं

आखिर क्या कुछ नहीं बदला इस वर्ष में
कुछ अच्छा हुआ तो कुछ बुरा हो गया पल भर में
आखिर ये सब बाते कहती मै किससे
सब अन्दर समाते हुए...बाहर आई एक नयी मैं...