Tuesday, 30 October 2012

तुम क्या जानो



वो कुछ पल की दूरियां तुमसे 
कितनी बेचैन कर देती है, तुम क्या जानो !
हर घडी कितना लम्बा लगता है 
बयां भी कैसे करें, तुम क्या जानो !

वो करीबी के हसीं लम्हें तुम्हारे संग 
कितनी मुस्कुराहट लाती है दिल में 
पर कितना अजीब है उसके बाद का डर 
मुझे खुद हैरानगी होती है, तुम क्या जानो !

उस डर के पल में तुम्हारा संग होना 
कितना सुकून पहुँचाता हैं मन को  
बस संग तुम्हारे कंधे पे सिर रख के 
कितना आसान है तुमसे कह जाना सब बात, तुम क्या जानो !

तुम्हारा बातें करते करते सो जाना 
कितना प्यारा है तुम क्या जानो !
और फिर भी हर बार तुम्हारा कहना 
कि अब से नहीं, कितना भोला है, तुम क्या जानो !

कहने को दिल तुमसे ना जाने 
क्या क्या करता है 
बस साथ न देता दिमाग़ मेरा वरना
इंतज़ार कितना है उस पल का, तुम क्या जानो !

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