Saturday, 22 September 2012

चलो एक बार फिर से अजनबी बन जाये हम दोनों...


"This is a poem dedicated to a person with whom I was very closely attached to... but then, times change...people change...situations change...Here it goes..."

अनगिनत बार ये कह चुकी हूँ मैं 
ना जाने क्या कमी रह गयी थी 
समझ से बाहर है मेरे अब  
कि आखिर उम्मीद अभी भी तुममे बाक़ी क्यों है ?

चाहे हो वजह कि अब नहीं रही मुहब्बत 
या हो वजह कि हो गयी है नफरत 
क्यों फरक पड़ता है इससे बताओ 
जब आखिरी मंज़िल राहों से मिट ही चुकी 

तो क्या हुआ मैं तुम्हारे साथ नहीं 
मेरी दुआये सदा तेरे संग है 
और वो हसीं लम्हें हमारे 
किसी की औकात नहीं चुराने की तुमसे

बस जियो, मुस्कुराओ और खुश रहो 
कि तुम्हारी ज़िन्दगी में ये ख़ुशी आई थी कभी 
और दिल में हमेशा उम्मीद रखो 
कि एक दिन किसी और रूप में, फिर से आएँगी भी 

 एक बार और कहती हूँ आज तुमसे 
भुला दो मुझे क्यूंकि कुछ ना है मुमकिन 
वजह जान के भी अनजान ना बनो 
और बस अपनाओ इस सच को और बढ़ते चलो  

1 comment:

  1. liked the line "vajah jaan ke bhi anjaan na bano"..
    anyways still hoping for the best!

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