कोई कहता है प्यार करने वालो में रब दिखता है
तो कोई कहता है कि आसपास ही ख़ुदा है
कुछ कहते है कि इन्सान में ही बसा है भगवान
और कभी तो पूछते है लोग
कि आखिर कहाँ हैं ये रब..ये ख़ुदा.. ये भगवान.. ये अल्लाह !
कभी नज़र तो आया नहीं वो..
पर मेरा सवाल उनसे ही है कि...
आख़िर नज़र तो हवा भी नहीं आती,
नज़र तो विश्वास भी नहीं आता,
नज़र तो प्यार भी नहीं आता,
ना ही आती है नज़र किसी की याद !
पर इन सबको तो हम सभी मानते है..
बग़ैर कोई सवाल उठाये..
फिर आखिर ये सवाल हमेशा ख़ुदा के वजूद पे ही क्यों उठता है?
आख़िर क्यों??
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