क्या तुमने कभी वो रास्तें देखे है...
जो पल भर में लगता है कि
नदी और समुन्दर में मिल जायेंगे
उन रास्तों पे तुम्हारे संग चलने का मन करता है |
क्या तुमने कभी पहाड़ो की श्रृंखला देखी है...
जितनी दूर तक ये नज़रें जाती है
उतने दूर तक ये पहाड़ और उसके बाद भी
उस आखिरी पहाड़ पे तुम्हारे साथ घर बसाने का दिल करता है |
क्या तुमने कभी किसी चोटी से पेड़ो के झुण्ड देखे है...
कुछ पे हरे पत्ते तो कुछ पे लाल भी
कुछ में सिर्फ कांटे ही कांटे तो कुछ फलो से झुके हुए
उन पेड़ो पे झूले डाल कर, तुम्हारे संग ऊँची पेंग लगाने को जी करता है |
क्या तुमने कभी बादलों को ज़मी को छूते देखा है...
जो अगर अपनी काली घटा बरसायें
तो चोट भी लगती है पर साथ ही ख़ुशी का एहसास भी होता है
उसी बारिश में तुम्हारे संग भीगने का मन करता है ।
ना जाने ऐसी कितनी अनगिनत दिल में तमन्ना है...
ना जाने कितनी ख्वाहिशे है...
बस ये छोटे से अरमां है कुछ पल बिताने के...
तेरे संग !
तो चोट भी लगती है पर साथ ही ख़ुशी का एहसास भी होता है
उसी बारिश में तुम्हारे संग भीगने का मन करता है ।
ना जाने ऐसी कितनी अनगिनत दिल में तमन्ना है...
ना जाने कितनी ख्वाहिशे है...
तेरे संग !