Sunday 21 February 2016

कहाँ तुम चले गए!


ये किस मोड़ पर आ गयी है ज़िन्दगी ...

जिनको देख बड़े हुए इतने बरस
दूर जाते दिखने लगे है वो...
चमक मिली थी जिनके आँखों में देख के
आँसू की नमी से बंद होने लगे है वो... 
सहारा मिला था जिनके कंधों पर सिर रख के
कमज़ोर पड़ने लगे है वक़्त के बोझ से वो...
हौसला मिला था जिनका हाथ पकड़ के
छूटने लगी है उंगलियाँ अब वो...
आँख-मिचौली खेली थी जिनके पीठ पीछे छिप के
बरसों से फ़र्ज़ निभाते, झुकने लगे है वो...
चलना सीखा था जिनके क़दम से क़दम मिला के
समय की रफ़्तार में धीमे पड़ने लगे है वो...

ना जाने कितने ख्वाब थे बाक़ी
ना जाने कितनी ख्वाहिशें करनी थी पूरी
कितनी ही आशाओं को निराशा में बदल कर
कितनी ही उम्मीदों पर पानी फेर कर
एक बार फिर हालात से लड़ना सीखा कर
एक बार फिर थोड़ा और बहादुर बना कर
खुद से जुदा, सबका साथ छोड़ कर
यूँ अकेला और तन्हा कर कहाँ तुम चले गए...

ये कौन सी अजीब उम्र है?
ये किस मोड़ पर आ गयी है ज़िन्दगी?

Thursday 27 August 2015

तुम ही हो !

इतना वक़्त गुज़र चुका हमें एक संग
पर एहसास तो कुछ पलों का भी नहीं
लोग कहते है कि ये लड़कपन है
पर अगर 'ये' इश्क़ नही तो कुछ भी नही !

पूछा मुझसे किसी ने इक सवाल
कि हुआ मुझे किस पल यक़ीं कि हो वो तुम ही
क़ाफी वक़्त लगा मुझे सोचने में जवाब
कहा मैंने गर 'वो' तुम नही तो कोई और भी नही !

जिस क़दर मुझे चाहत है तुमसे
न है ये एक नशा, तुम एक आदत भी नही
शायद कोई लफ्ज़ नही जो कर सके इसे बयाँ
पर गर 'ये' सच नही तो सच कुछ भी नही !

संग रहना है तुम्हारे मुझे अब बस
आज नही, कल नही, अगले बरस ही सही
न जाने कब होगा ये हक़ीक़त में
पर गर 'ये' मुमकिन नही, तो मुमकिन कुछ भी नही !

Thursday 12 June 2014

ये दोस्ती ...

"So this poem I wrote for a very good friend of mine... A friend who should have been my priority rather than the one who actually was... Wrong priorities cost me the kind of friendship that I had with him, at least in my mind. Distances creep-ed up between us. And where we used to talk daily... every few hours... converted into weekly. And when I realized that I shouldn't have let that happen, I guess it was too late...

कभी कभी यूँ अचानक से
दोस्तों से बातें करते हुए
उनकी कहानियाँ सुनते हुए
एक कहानी मैं भी जोड़ लेती हूँ
एक कहानी जिसकी शुरुआत तो अच्छी थी
पर राह चलते चलते
कुछ ग़लत मोड़ ले लिए
सोच में डूब जाती हूँ फिर मैं
कि काश ऐसा किया होता
या काश वैसा ना किया होता
तो शायद मेरी कहानी का
मंज़र ही कुछ और होता
शायद हम आज भी वैसे ही दोस्त होते
शायद वो राहें आज भी समतल होती
शायद उन कांटो की जगह
कुछ फूल ही होते
शायद होती हमारी दोस्ती और भी गहरी

काश इन शायद को सच में बदल सकती मैं
काश ये काश एक हकीकत होता …
तो कुछ कहानियाँ आज मैं तुम्हे सुना रही होती
और ये बातें मैं तुमसे कह रही होती
पर अब तो आलम ये है कि
तेरी मेरी कहानी इस काश और शायद में
सीमित रह गयी है
काश ये बदल पाती मैं
काश…

"P.S.: After writing this poem I realized its never too late and fortunately we are back on talking terms... everything sorted out... Though we still don't talk daily, but we are back to being good friends :-)"

Wednesday 4 June 2014

तुम और मैं मिलेंगे



बस उस दिन का इंतज़ार है
जब एक दूसरे का हाथ पकड़ के
एक दूजे की आँखों में आँखें डाले
एक हसीं शाम को
तुम और मैं मिलेंगे

उन समुन्दर की लहरों में चलते हुए
एक शाम को सूरज को ढलते हुए
उस कश्ती को सूरज से ओझल होते हुए
देखेंगे हम जब
तुम और मैं मिलेंगे

अपने हसीं पुराने दिनों को
अपने उन पागलपन भरी हरकतों को
वो प्यार और तकरार वो रूठने और मनाने को
याद करेंगे हम जब
तुम और मैं मिलेंगे

ना जाने कब कहाँ और कैसे
कुछ दिन, हफ्ते या महीनों में
ना ही पता है कितने वक़्त के लिए
किस लम्हे और घड़ी में
तुम और मैं मिलेंगे

बस यक़ीं है कि तुम और मैं मिलेंगे
हम मिलेंगे

Tuesday 27 May 2014

Missing hai Meri Mumbai!


"I wrote this poem when I moved to Mumbai for my new job... Though I have been to Mumbai few times earlier... I always had someone with me... under-grad friends...graduation friends... and above all my brother has always been there... This time its me alone!..So this is dedicated to all of you who were there in "my" Mumbai"

Mumbai… wahi ki wahi hai
Wahi cars ki lambi line...
Wahi locals ki chhuk chhuk...
Wahi samundar kinare baithna...
Wahi baarish mein bheengna...
Wahi kala chuski...
Aur wahi chatpate vada paav!
Wahi juhu chaupati pe khana peena...
Wahi nariman point pe ghante baithna...
Wahi marine drive pe ghante bitana...
Sath mein Naturals ki ice cream khana...
Aur Hill Road ki Shopping!
Waisi hi bhagti zindagi...

Par phir bhi kuch missing hai!
Kuch wajah to hai us masti ki kami hai
Shayad us dost ki kami hai
Jiske sath pahuche the aadhi raat Bandstand...
Ya un dosto ki
Jinke sang pakdi thi Churchgate se last local...
Ya us dost ki
Jiske sang chakhi thi na jane kitni galiyo ki “cuisine”...
Ya un dosto ki
Jinke sang lagaye the kitne saare gappe...
Ya phir mere bhai ki
Jisne dikhayi thi mujhe ye “Meri” Mumbai!
Missing hai wo befikr zindagi
Missing hai meri purani Mumbai
Missing hai... bahot kuch missing hai!!

Wednesday 12 December 2012

Then or Now?


There was a time
when I could write
numerous lines for you
endless thoughts
all my feelings
and it felt, it’s never gonna end!
But then, my heart asks
Why did it stop now?
I think hard…
I think hard enough
And then… I realize
I realize that
today is here
and I spend
all my day
sitting beside you
in your arms
talking to you
the whole day and night
sharing with each other
what we feel,
how deeply we love
and how lucky we are…
That answers my doubts
I used to write to let you know
the feelings inside my heart
and now I tell you
directly, lying in your arms…
that also raises another question
that only you could answer
“Which is better?”
Then – or – Now
After all…
It’s all for you…
It’s all about you!!

Friday 30 November 2012

संग तेरा मेरा...



जैसा रिश्ता है बारिश का 
इस जगह से 
बस कुछ वैसा ही रिश्ता हो 
काश मेरा तुमसे !

जैसे हर पल खूबसूरत नज़ारें 
दिखते है यहाँ से 
काश हर लम्हा हमारा
वैसा ही खूबसूरत रहे !

जितना प्यारा इन पहाड़ों का 
इन वादियों का साथ है 
काश उतना ही गहरा हमारे 
रिश्ते की सौगात हो !

जैसे कोई सीमा नहीं इन 
बादलों के लिए
काश वैसे ही ना हो कोई
बंधन हमारे प्यार में !